अहो! भाग्य जो आप पधारे।
छँटे तिमिर मन के अब सारे।
मन में कैसा शोर मचा रे।
यह तेरा ही नाम पुकारे।
तूने कैसा ज्ञान दिया रे।
मन तेरे ही शरण हुआ रे।
अहो! भाग्य जो आप पधारे।
छँटे तिमिर मन के अब सारे।
शांत हुई मन की ज्वालाएँ।
मिटी मेरे मन की दुविधाएँ।
कर्म की पहचान दिया रे।
पथ का है संज्ञान दिया रे।
अहो! भाग्य जो आप पधारे।
छँटे तिमिर मन के अब सारे।
इतना मुझे सम्मान दिया रे।
सीमाओं को लांघ दिया रे।
अपना सबकुछ दान दिया रे।
टूट न जाऊँ जीवनपथ में,
मुझमें अपना प्राण दिया रे।
अहो! भाग्य जो आप पधारे।
छँटे तिमिर मन के अब सारे।
✍️ मिहिर
#mithileshmihir
Comments
Post a Comment