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Showing posts with the label Ghazal

भूख बड़ी होती है बाबू

पेट जले है, बर्तन खाली। मार पड़ी है किस्मत वाली। सपनों में पैलेस रखा है, सिरहाने पे लोटा, थाली।

चारा-गर पूछे हैं: "क्या-क्या दिखता है?"

चारा-गर* पूछे हैं: "क्या-क्या दिखता है?" मैं कहता: "बस यार का चेहरा दिखता है।" Charagar puchhe haiN: "kya kya dikhta hai?" MaiN kahta: "bas yaar ka chehra dikhta hai" इक अरसे तक पंछी रहा है पिंजरे में,  सो, पंछी को हर-सू** पिंजरा दिखता है। Ik arse tak panchhi rha hai piNjre meiN So, panchhi ko har-su piNjra dikhta hai

मुहब्बत करो जी, मुहब्बत मिलेगी

फ़क़त क्या इबादत से जन्नत मिलेगी। मुहब्बत करो जी, मुहब्बत मिलेगी। अरे! ओ मुसाफ़िर डगर कौन तेरा करो बंद आँखें सदाक़त मिलेगी।

जादूगर हूँ

तुझको मैं दीवानी कर दूँ जादूगर हूँ। खुद से ही बेगानी कर दूँ जादूगर हूँ। हो अगर इजाजत मुझको दिल में आने की, पत्थर पानी-पानी कर दूँ जादूगर हूँ।