फ़क़त क्या इबादत से जन्नत मिलेगी।
मुहब्बत करो जी, मुहब्बत मिलेगी।
अरे! ओ मुसाफ़िर डगर कौन तेरा
करो बंद आँखें सदाक़त मिलेगी।
अगरचे तुम्हीं से हुई है मुहब्बत,
मगरचे तुम्हीं से शिकायत मिलेगी।
हुए ख़त तुम्हारे मिरी अब वसीयत,
मिरी राख ढूँढों वसीयत मिलेगी।
गमे-हिज़्र की बस यही इक दवा है,
छलक जाय आँसू तो राहत मिलेगी।
-मिहिर
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