Welcome to my creative journey! This blog is more than just words — it’s a living map of my dream to become a multimedia storyteller who blends science, anime, folk traditions, music, and creative writing.
महीने का अंतिम दिन था। सूरज की छुट्टी हो गई थी और चांद हाथ में टिफिन का डब्बा लिए नाइट ड्यूटी के लिए बस पहुँचने ही वाला था , शाम की मदहोशी छाई हुई थी। इधर सूरज की छुट्टी होते ही कामगारों की भी छुट्टी हो गयी। सब अपने - अपने रूम की ओर प्रस्थान करने लगे। हालांकि कलेसर का कार्यस्थल और विश्रामस्थल एक ही है तो उसे कहीं जाना ही नहीं है। मगर फिर भी छुट्टी होते ही कलेसर को बड़ी तेज कदमों से निकलता देख , भीखन भी निकला , तो पाया कि उनके बीच लगभग पंद्रह कदम का फासला हो चुका है। " अहो ! कलेसर दा कहाँ जाय रहे हैं। " भीखन ने ऊँची आवाज में पूछा।